एक एक ईंट को सजा कर घर बनाने में लग जाते हैं कई साल...
उसे तोड़ने में लगते हैं मात्र १ या ३ दिन|
शरीर की व्यवस्था बनाये रखने में लगते हैं प्रतिदिन संयम और सुन्दर भावों/ मूल्यों का बहाव...
शरीर की इस व्यवस्था को बिगाड़ने के लिए चाहिए मात्र एक ऋणात्मक आवेश (बुलडोजर चलाने जैसा)...
क्या चाहिए? व्यवस्था या अव्यवस्था? आपके हाथ में है सब कुछ|
ईर्ष्या, शिकायत भाव भी एक प्रकार का आवेश ही है इस प्रकार के ऋणात्मक भावों में जीने वाले मानव तो मुझे कभी आबाद नहीं दिखे...
क्यों ना हम इसके बजाय स्वागत और प्रेम भाव से भरे हुए हों?
अव्यवस्था से प्रभावित या पीड़ित होना भी एक प्रकार का आवेश ही तो है इससे प्रभावित होने की बजाय समझ, समाधान पर कार्य- व्यवहार किया जाए|
इतना महत्वपूर्ण मानव तन मिला है उसे इस तरह व्यर्थ में क्यों गवाएं?
क्यों ना इसकी सार्थकता/ सदुपयोगिता पर ध्यान दिया जाये?
उसे तोड़ने में लगते हैं मात्र १ या ३ दिन|
शरीर की व्यवस्था बनाये रखने में लगते हैं प्रतिदिन संयम और सुन्दर भावों/ मूल्यों का बहाव...
शरीर की इस व्यवस्था को बिगाड़ने के लिए चाहिए मात्र एक ऋणात्मक आवेश (बुलडोजर चलाने जैसा)...
क्या चाहिए? व्यवस्था या अव्यवस्था? आपके हाथ में है सब कुछ|
ईर्ष्या, शिकायत भाव भी एक प्रकार का आवेश ही है इस प्रकार के ऋणात्मक भावों में जीने वाले मानव तो मुझे कभी आबाद नहीं दिखे...
क्यों ना हम इसके बजाय स्वागत और प्रेम भाव से भरे हुए हों?
अव्यवस्था से प्रभावित या पीड़ित होना भी एक प्रकार का आवेश ही तो है इससे प्रभावित होने की बजाय समझ, समाधान पर कार्य- व्यवहार किया जाए|
इतना महत्वपूर्ण मानव तन मिला है उसे इस तरह व्यर्थ में क्यों गवाएं?
क्यों ना इसकी सार्थकता/ सदुपयोगिता पर ध्यान दिया जाये?