Friday, January 19, 2018

धरती, मानव और प्रदूषण

धरती में बढ़ते प्रदूषण का एक और कारण है और वह है ई वेस्ट यानि की आपके घर के मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक सामान, कंप्यूटर, लेपटॉप, चार्जर, बैटरी इत्यादि। 
हमने चीजें बनानी और चलानी तो सीख ली हैं पर इसके खराब होने पर हमें इसका निष्पादन सही ढंग से कैसे करना है इसके बारे में न तो कोई निर्माता (इन सब चीजों का उत्पादन करने वाला) गंभीर है और ना ही हम।
अगर कोई व्यवस्था होती तो हम उस ओर जरूर कदम भी उठाते पर अभी तक कोई गंभीर पहल नहीं हुई है।
बाज़ार में हर दिन एक नया मॉडल चाहे वह मोबाइल, लैपटाप, टीवी का हो या गाड़ियों का सभी का सिर्फ एक ही उद्देश्य है कि कैसे उपभोक्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करें और धन (प्रतीक मुद्रा ) कमाए। 
इसके लिए पुराने मॉडल को हटा दिया जाता है या उसमें ऐसा परिवर्तन कर दिया जाता है कि हमें नया खरीदना ही पड़ता है।जैसे सिम कार्ड के जगह में थोड़ा परिवर्तन, बैटरी अलग प्रकार की, चार्जर का अलग अलग प्रकार। इसके लिए आप एक वीडियो देख सकते हैं "story of stuff (चीजों की कहानी)" https://www.youtube.com/watch?v=j_n39kTwpu0 
जबकि पुराने मॉडल को आसानी से सुधार कर चलाया जा सकता था। पर बाज़ार को इन सबसे क्या लेना देना। धरती की सुरक्षा से तो उनको कोई लेना देना ही नहीं है। हर बार एक नए मॉडल के लिए धरती के संसाधन का शोषण होता है और जब हम इन्हें कूड़े के रूप में फेंकते हैं तो इनमें प्रयोग किया गया खतरनाक रसायन जैसे पारा आदि मिट्टी, वायु व जल को प्रदूषित करता है।

अब देखते हैं इन कंपनियों में काम करने वाले लोगों को...चूंकि हमारी शिक्षा पद्धति हमारी पीढ़ियों को इसी बात के लिए तैयार करती है कि वे कैसे मल्टीनेशनल कंपनियों के काम आ सके तो वे बजाय इस धरती में सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी के मल्टीनेशनल कंपनियों के ही गुलाम बने रहते हैं। 
तो अब इन वर्तमान शिक्षा से शिक्षितों (साक्षर) के पास इन उत्पादन (इलेक्ट्रॉनिक्स/ मशीनरी आदि) के सिवाय और कोई रास्ता नहीं होता। 
अगर इन्हें/हमें स्वायत्त होने की मानवीयता पूर्ण शिक्षा मिली होती तो यह स्थिति तो कभी नहीं आती। 
तब स्थिति कुछ ऐसी होती - कंपनियाँ आवश्यकता के हिसाब से उच्च गुणवत्ता वाले सामान बनाती ताकि वह बहुत अधिक दिनों तक चले और धरती सुरक्षित रहे। जो पार्ट्स खराब हो जाते उसमें सुधार करती। हमें पूरे सामान को फेंकने की आवश्यकता नहीं होती।
बाकी बचे समय में कंपनी में स्वस्फूर्त भागीदारी करने वाले लोग अन्य आयामों जैसे स्वास्थ्य-संयम, शिक्षा संस्कार, उत्पादन – कार्य (श्रम पूर्वक- खेती, गौपालन, कुटीर उद्योग/समृद्धि हेतु/आवर्तनशील पद्धति से), विनिमय-कोष (समृद्धि हेतु) और न्याय- सुरक्षा (उभयतृप्ति, अभय हेतु) में भागीदारी करते दिखाई पड़ते।
इस प्रकार इन सबसे यही निष्कर्ष निकलता है कि वर्तमान में शिक्षा के मानवीयकरण की कितनी अधिक आवश्यकता है। इस प्रकार की शिक्षा से हम स्वयं का, इस पीढ़ी का व आगे आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित रख पाएंगे। प्रकृति (मनुष्येत्तर प्रकृति) व इंसानों के साथ बेहतर तालमेल के साथ जी पाएंगे।
साथ ही समझदारी पूर्वक उठाए गए कदम से हमारी धरती की व्यवस्था बनी रहेगी। एक व्यवस्थित धरती में ही चारों अवस्थाओं (पदार्थ, प्राण, जीव और ज्ञान/मानव)का वैभव संभव है।

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