Friday, January 19, 2018

धरती -भाग ३

"पर्यावरण समस्या का मूल तत्व खनिज तेल व कोयला ही है। इसके विकल्प के रूप में सूर्य-उष्मा, प्रवाह-बल की उपयोगिता विधि व उसके लोकव्यापीकरण की आवश्यकता है। इसी से जल, थल व वायु प्रदूषण निवारण होना सुस्पष्ट है। 
भूकम्प और बाढ़ जनित भय का निराकरण, बाढ़ की सीमायें व भूकम्प की निश्चित दिशा में मानव को पहचानने में आता है, उसी के आधार पर इसका निराकरण होता है। जब से धरती के साथ अपराध अर्थात धरती के भीतर की चीजों का अपहरण करने के लिए या शोषण करने के लिए प्रयत्न किया है, तब से धरती की भूकम्प सम्बन्धी दिशायें विचलित हुई हैं। यह भी मानव को पता है। धरती के साथ अपराध बन्द करने पर धरती अपनी निश्चित विधि से ही अपने सौभाग्य को बनाये रखने में सक्षम है। अतएव धरती के साथ अपराध करने की स्वीकृतियों में परिवर्तन करने की आवश्यकता, इसके लिए भरपूर समझदारी की आवश्यकता है। 
धरती का तापक्रम बढ़ना परिणामत: समुद्र में जलस्तर बढ़ना। अत: यह सुस्पष्ट है कि धरती में निहित खनिज, तेल एवं कोयला ही ताप पचाने के द्रव्य हैं। 
अतएव इन द्रव्यों का शोषण न किया जाए, तभी संतुलन की स्थिति आना संभव है। चक्रवात व तूफान भी अपने निश्चित दिशा व स्थान में आना पाया जाता है। इससे बचकर मानव सुखपूर्वक पीढ़ी-दर-पीढ़ी धरती पर बने रह सकता है। 
अतएव शिक्षा की परिपूर्णता मानव परम्परा में प्रमुख मुद्दा है।"

(मानव संचेतनावादी मनोविज्ञान, संस्करण:2008, अध्याय:5-5.1, पेज नंबर:81-82)

अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन सहज मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद)
प्रणेता - श्रद्धेय श्री ए. नागराज जी 

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