हम विश्वास पूर्वक जीना चाहते हैं कि अविश्वास में?
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"ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या"
कि
"ब्रह्म सत्य, जगत शाश्वत"
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क्या सहज स्वीकार होता है?
निश्चित रूप से आपका उत्तर स्वयं में आएगा कि "ब्रह्म सत्य, जगत शाश्वत" पर दूसरे ही क्षण आपमें दूसरा विचार उठेगा और उन लोगों को ज्यादा परेशान करेगा जो इसमें ज्यादा (वेद पुराण में) पारंगत हैं कि हमारे संत ऋषि- मुनि गलत कैसे हो सकते हैं जिन्होंने इसे देखा, जिनकी चाहना सर्व शुभ की है मानव जाति के कल्याण की है वे गलत कैसे हो सकते हैं| इस प्रकार आपके ऊपर उनका "मानना" हावी हो गया और आपने अपने अंदर की "सहज स्वीकृति" का गला घोंट दिया|
अब इसका प्रभाव देखिये अब तक क्या हुआ?
शुरुआत ही अविश्वास से हुआ कि मात्र "ब्रह्म ही सत्य है और जगत मिथ्या" अर्थात आप, हम, हमारे बच्चे, हमारा परिवार, समाज, हमारे द्वारा बनाई गई सारी प्रणाली, सारी प्रकृति ही मिथ्या है| इस प्रकार हम गृहस्थ में रहकर भी इस बात से पूरी तरह अनजान रहे कि परिवार ही इन सारी व्यवस्था ( अखंड समाज और सार्वभौम व्यवस्था) का आधार है|
"ब्रह्म ही सत्य है और जगत मिथ्या" का प्रभाव यह हुआ कि हम हमारे अपनों पर ही विश्वास नहीं कर पाये| औरों की बात ही छोड़िये हम स्वयं पर ही विश्वास नहीं कर पाये|
"ब्रह्म से ही जीव-जगत पैदा हुआ और इसी में विलीन हो जाना बताया" इस एक और मान्यता का मतलब हम कुछ करें या ना करें आखिर ब्रह्म में ही तो समाना है सब कुछ माया है तो इससे अच्छा है कुछ करें ही नहीं बस ब्रह्म की याद में डूबे रहें और लोगों को इसके बारे में बताते रहे और लोग हमें दान दक्षिणा देते रहे| हम तो महान है क्योंकि हम उस ब्रह्म की याद में डूबे हुए हैं जो एकमात्र सत्य है और बाकी मिथ्या लोग, माया में डूबे लोग अगर हमें दान देंगें तो वे मोक्ष को प्राप्त हो जायेंगे| (यह उन लोगों की बात है जिन्हें प्रकृति के साथ श्रमपूर्वक उत्पादन/समृद्धि का ज्ञान नहीं )
एक बात और देखी..जैसे ही हमारे घर में किसी संबंधी की मृत्यु होती है आपको/ हमको ऐसा लगता है कि अब कुछ बचा ही नहीं..हम स्वयं को ठगा सा महसूस करते हैं कि हमने जिनके साथ तमाम जिंदगी का सफर तय किया वह इस दुनिया में ही नहीं है उसका अस्तित्व ही नहीं है चूँकि हमने तो मान रखा है ना कि "ब्रह्म ही सत्य है और जगत मिथ्या" तो हमारा निराशा में जाना तो एकदम निश्चित है|
अब इस घोर निराशा में डूबकर, जगत को मिथ्या मानकर, इस अविश्वास में रहकर हमने क्या उपलब्धि की यह हम सबके सामने है ही|
स्वयं का और परिवार में जीना सही नहीं रहा इसका असर समाज, देश व प्रकृति पर पड़ा|
धरती बीमार हो गई चूँकि "ब्रह्म ही सत्य है और जगत मिथ्या" तो धरती का पेट फाड़ने से क्या होगा? वह भी तो हमारी तरह ब्रह्म में विलीन होने वाली है तो जब तक जी रहे हैं ऐसे करने में कोई बुराई नहीं है.......
तो बंधुओं बात यहाँ यह है कि हम यह नहीं कह रहे कि हमारे संत ऋषि मुनियों की सर्व मानव जाति की शुभ चाहना में कोई भी संदेह है...बिलकुल भी नहीं है बहुत से ऐसे महापुरुष थे जिनकी चाहना में शंका करना मूर्खता होगी और आज तक उन्होंने जो किया वह शायद ही हम कर सके.... वह एक आधार था जिस पर ही आगे का अनुसंधान हुआ|
तो गडबड़ी कहाँ हुई? चाहना में गडबड़ी थी/ कैसे करना में गडबड़ी थी या कार्य व्यवहार में गडबड़ी थी? क्यों यह धरती इतने शुभ चाहत और कार्य के बावजूद बीमार हुई?
गडबड़ी यह हुई कि हमने अस्तित्व को जैसा है वैसा पूरा नहीं देखा ("सही समझ" वास्तविकता को जैसा है वैसे ही देखने से आता है) अगर पूरा देखा होता तो जैसा है वैसा पूरा समझ पाते और समझा पाते और जिन्होंने पूरा देखा तब उनकी इतनी उम्र हो चुकी थी या जैसी भी स्थिति रही हो वे उस अनुभव को प्रमाणित नहीं कर पाये|
आपको वो चार अन्धों वाली कहानी तो याद ही होगी सभी ने एक हाथी को अपने हाथ से स्पर्श कर कई तरह के निष्कर्ष निकाले|
एक ने हाथी के सूंड को पकड़ा तो उसे लगा कि यह तो सांप है|
एक ने हाथी का पैर पकड़ा तो उसे लगा कि यह खम्भा है|
एक ने उसकी पूछ पकड़ी तो उसे लगा कि यह तो रस्सी है|
फिर एक ने उसका कान स्पर्श किया तो उसे लगा कि यह सूपा है|
और सभी अपने अपने "मानना" में लगे रहे और उसे ही सही मानकर एक दूसरे से लड़ने लगे|
बस यही स्थिति है वर्तमान में इस संसार की|
अब यह तो आप ही तय करें कि
"ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" में जीना है
कि
"ब्रह्म सत्य, जगत शाश्वत" में ?
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अर्थात आपको विश्वास पूर्वक जीना है या अविश्वास में| यह आपको तय करना है क्योंकि ये शरीर यात्रा आपकी है और यह आपकी जिम्मेदारी है हम मात्र सूचना दे सकते हैं|
आप सभी का शुक्रिया कि आपने आज तक मुझे बेहद सम्मान से सुना| यह लेख थोड़ा कठोर है पर इसे आप सभी के साथ शेअर करना भी मुझे बेहद आवश्यक लगा| क्योंकि हर मानव "समझना" तो चाहता ही है|
इस लेख में किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा चाहूँगी| पेश किये गए विचार को कृपया माने नहीं स्वयं के अधिकार पर जाँचें|